चंडीगढ़: पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने 2015 के बेअदबी मामलों में डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम सिंह पर मुकदमा चलाने की मंजूरी दे दी है। यह फैसला सुप्रीम कोर्ट द्वारा राम रहीम के खिलाफ मुकदमे को बहाल करने के तीन दिन बाद आया है। सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के मार्च 2024 के उस आदेश पर रोक लगा दी थी, जिसमें इन आपराधिक मामलों की कार्रवाई पर रोक लगाई गई थी। इस फैसले से राम रहीम की मुश्किलें और बढ़ गई हैं, जो पहले से ही हत्या और बलात्कार के मामले में 20 साल की सजा काट रहा है।
सुप्रीम कोर्ट का आदेश और मुकदमा बहाली
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को राम रहीम के खिलाफ चल रहे बेअदबी मामलों में कार्रवाई बहाल कर दी थी। शीर्ष अदालत ने पंजाब सरकार की अपील पर सुनवाई करते हुए पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के उस आदेश को खारिज कर दिया था, जिसमें इन मामलों में चल रही कार्रवाई पर रोक लगा दी गई थी। कोर्ट ने यह भी कहा कि 2015 में हुई इन घटनाओं के संबंध में राम रहीम के खिलाफ लगे आरोपों की जांच और सुनवाई जारी रहनी चाहिए। यह निर्णय पंजाब सरकार की उस याचिका पर आया जिसमें उच्च न्यायालय के आदेश पर सवाल उठाया गया था।
क्या हैं 2015 के बेअदबी मामले?
फरीदकोट जिले में 2015 के बीच पवित्र गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी की तीन प्रमुख घटनाएं सामने आई थीं।
- पहली घटना: जुलाई 2015 में बुर्ज जवाहर सिंह वाला गांव के गुरुद्वारे से श्री गुरु ग्रंथ साहिब की पवित्र बीड़ चोरी हो गई थी।
- दूसरी घटना: सितंबर 2015 में बरगारी गांव में शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (SGPC) द्वारा प्रबंधित गुरुद्वारे के बाहर गुरु ग्रंथ साहिब के अपमानजनक पोस्टर चिपकाए गए थे।
- तीसरी घटना: अक्टूबर 2015 में बरगारी गांव के पास श्री गुरु ग्रंथ साहिब के 112 फटे पन्ने पाए गए थे, जिसके बाद पूरे इलाके में आक्रोश फैल गया था।
इन घटनाओं के खिलाफ पूरे पंजाब में विरोध प्रदर्शन हुए थे और बरगाड़ी में प्रदर्शनकारियों पर पुलिस द्वारा गोलीबारी की गई थी, जिसमें कुछ लोगों की जान भी गई थी। इन घटनाओं के बाद स्थानीय पुलिस स्टेशन में भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 295A के तहत एफआईआर दर्ज की गई थी, लेकिन मामलों में कार्यवाही रोक दी गई थी। अब सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप से इन मामलों में फिर से कार्रवाई शुरू हो सकेगी।
मुख्यमंत्री मान की मंजूरी
पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान, जिनके पास गृह मंत्रालय का प्रभार भी है, ने राम रहीम के खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी दे दी है। इस मंजूरी में दो साल का समय लगा, जो विपक्ष के आलोचना का भी कारण बना था। मानसून सत्र के दौरान विपक्ष के नेता प्रताप सिंह बाजवा ने इस देरी को लेकर मुख्यमंत्री पर सवाल उठाए थे।
CBI जांच और विवाद
यह मामला तब और गंभीर हो गया जब 2018 में तत्कालीन मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह की सरकार ने CBI को दी गई जांच की सहमति वापस ले ली और इसे पंजाब पुलिस की एक विशेष जांच टीम (SIT) को सौंप दिया गया। राम रहीम ने इस फैसले को उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी और CBI द्वारा जांच जारी रखने की मांग की थी। उच्च न्यायालय ने उसकी याचिका को मंजूरी दी थी, जिसके बाद कार्यवाही पर रोक लगा दी गई थी। लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद मुकदमे की राह फिर से साफ हो गई है।
राम रहीम की कानूनी चुनौतियाँ बढ़ीं
राम रहीम, जो पहले से ही हरियाणा की सुनारिया जेल में बलात्कार और हत्या के मामले में 20 साल की सजा काट रहा है, अब 2015 के बेअदबी मामलों का सामना भी करेगा। यह कदम राम रहीम के लिए एक और बड़ा झटका है, क्योंकि उसे पहले ही इन मामलों में संलिप्तता के आरोपों का सामना करना पड़ा है।
राजनीतिक और सामाजिक प्रभाव
बेअदबी के ये मामले पंजाब की सिख भावनाओं के लिए अत्यधिक संवेदनशील हैं और इस मुद्दे ने राज्य में बड़े पैमाने पर राजनीतिक और सामाजिक उथल-पुथल मचाई थी। अब इन मामलों में फिर से कार्रवाई शुरू होने से राज्य में राजनीतिक परिदृश्य पर भी असर पड़ सकता है, खासकर जब विपक्षी दल इस मुद्दे को लेकर सरकार पर दबाव बनाए हुए हैं।
अब देखने वाली बात यह होगी कि इस मुकदमे की सुनवाई किस दिशा में जाती है और इसके क्या परिणाम होते हैं।