नई दिल्ली, 30 अक्तूबर 2024 – दीपावली से ठीक एक दिन पहले नरक चतुर्दशी का पर्व मनाया जाता है, जिसे छोटी दिवाली, काली चौदस और रूप चौदस के नामों से भी जाना जाता है। हर वर्ष कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाए जाने वाले इस दिन को धार्मिक दृष्टि से विशेष महत्व प्राप्त है। मान्यता है कि इस दिन मृत्यु के देवता यमराज की पूजा कर अकाल मृत्यु और नरक में जाने से मुक्ति पाई जा सकती है। इसके साथ ही, इस दिन सुबह स्नान करने के बाद भगवान कृष्ण की पूजा भी रूप और सौंदर्य की प्राप्ति के लिए की जाती है।
नरक चतुर्दशी का पौराणिक महत्व
पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान कृष्ण ने इस दिन क्रूर दैत्यराज नरकासुर (भौमासुर) का वध किया था। कथा के अनुसार, भौमासुर ने देवताओं के कई अमूल्य रत्न और वरुण का छत्र चुराकर तीनों लोकों में आतंक फैला रखा था। उसने पृथ्वी के कई राजाओं और साधारण जनों की कन्याओं का भी हरण कर उन्हें बंदी बना लिया था। इंद्रदेव के आग्रह पर भगवान कृष्ण ने अपनी पत्नी सत्यभामा के साथ नरकासुर का वध कर देवताओं और बंदी कन्याओं को उसकी कैद से मुक्त कराया। इसीलिए, इस दिन को नरक चतुर्दशी के रूप में मनाया जाता है और इसी अवसर पर दीप जलाने की परंपरा का आरंभ हुआ था।
क्यों कहते हैं नरक चतुर्दशी को छोटी दिवाली?
हिंदू पंचांग के अनुसार, कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाई जाने वाली नरक चतुर्दशी दीपावली से एक दिन पहले आती है। इसलिए इसे छोटी दिवाली कहा जाता है। इस दिन घरों में 14 दीप जलाने की परंपरा है, जो मृत्यु और नरक के भय से मुक्ति दिलाने के प्रतीक माने जाते हैं। इस दिन को यम चतुर्दशी, रूप चौदस और नरक पूजा जैसे नामों से भी जाना जाता है।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, नरक चतुर्दशी पर यमराज की पूजा और दीप जलाने से मृत्यु के देवता का आशीर्वाद प्राप्त होता है, जो जातक को अकाल मृत्यु और नरक से बचाने में सहायक माना जाता है।