नई दिल्ली: प्रख्यात अर्थशास्त्री और लेखक बिबेक देबरॉय का शनिवार सुबह 7 बजे दिल्ली के एम्स अस्पताल में निधन हो गया। वे 69 वर्ष के थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आर्थिक सलाहकार परिषद (EAC-PM) के अध्यक्ष रहे देबरॉय को आंतों में रुकावट की शिकायत के बाद अस्पताल में भर्ती कराया गया था। उनके निधन से देश के बौद्धिक और आर्थिक जगत में शोक की लहर दौड़ गई है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देबरॉय के निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘X’ पर लिखा कि बिबेक देबरॉय न केवल एक महान विद्वान थे, बल्कि अर्थशास्त्र, इतिहास, संस्कृति, राजनीति, और अध्यात्म जैसे विविध क्षेत्रों में भी उनका गहन अध्ययन और प्रभाव था। पीएम मोदी ने कहा, “उन्होंने अपने कार्यों से भारत के बौद्धिक परिदृश्य पर एक अमिट छाप छोड़ी है। उन्होंने हमारे प्राचीन ग्रंथों पर भी उल्लेखनीय कार्य किया, उन्हें नई पीढ़ी के लिए सुलभ बनाया।”
बिबेक देबरॉय का शैक्षणिक और पेशेवर सफर
बिबेक देबरॉय ने शिक्षा की शुरुआत रामकृष्ण मिशन स्कूल, नरेंद्रपुर से की थी, जिसके बाद प्रेसीडेंसी कॉलेज कोलकाता, दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स और ट्रिनिटी कॉलेज, कैम्ब्रिज से उच्च शिक्षा प्राप्त की। देबरॉय ने प्रेसीडेंसी कॉलेज कोलकाता, गोखले इंस्टीट्यूट ऑफ पॉलिटिक्स एंड इकोनॉमिक्स (GIPE) और भारतीय विदेश व्यापार संस्थान (आईआईएफटी) में भी कार्य किया। वह नीति आयोग में 5 जून 2019 तक सदस्य रहे और वहां कई महत्वपूर्ण परियोजनाओं पर कार्य किया।
उन्होंने हाल ही में सितंबर में पुणे के GIPE के कुलपति पद से इस्तीफा दिया था। इससे पहले बॉम्बे हाई कोर्ट ने पूर्व कुलपति अजित रानाडे को अंतरिम राहत दी थी।
अर्थशास्त्र और प्राचीन भारतीय ग्रंथों पर उल्लेखनीय योगदान
अपने लंबे करियर में, बिबेक देबरॉय ने भारतीय पुराणों का अंग्रेजी में आसान अनुवाद किया, जिससे युवा पीढ़ी को भारतीय संस्कृति से जोड़ने का उनका उद्देश्य स्पष्ट होता है। साथ ही उन्होंने रेलवे नीति, सामाजिक असमानताओं और आर्थिक सुधारों पर भी कई महत्वपूर्ण लेख और शोध पत्र लिखे। देबरॉय को 2015 में पद्म श्री से सम्मानित किया गया और 2016 में यूएस-इंडिया बिजनेस समिट में लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड से भी नवाजा गया।
देश के बौद्धिक परिदृश्य पर अपनी छाप छोड़ने वाले बिबेक देबरॉय के निधन से उनकी टीम, समर्थक और सहयोगी गहरे सदमे में हैं।